स्वतंत्रता का अधिकार [RIGHT TO FREEDOM]

स्वतंत्रता का अधिकार




स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख आर्टिकल 19 से लेकर आर्टिकल 22 तक 4 आर्टिकल शामिल है

आर्टिकल 19 मैं जो स्वतंत्रता दे रखी है उस पर रोक कैसे लगाए जाएं और उन स्वतंत्रता की सीमा क्या होगी इस बात का उल्लेख करता है आर्टिकल 19 की धारा एक 6 प्रकार के स्वतंत्रता की बात करता है साथ ही एक प्रस्तावना की बात करता है और छह प्रकार की स्वतंत्रता में
                                          
01.पहला स्वतंत्रता है भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
2.बिना हथियारों के शांतिपूर्ण बैठने यह सम्मेलन करने की स्वतंत्रता
3. साथ ही संघ यह संगठन बनाने की स्वतंत्रता
4. घूमने फिरने की स्वतंत्रता
5.रहने या बसने की स्वतंत्रता
6.व्यापार की स्वतंत्रता

हम यदि आर्टिकल 19 के धारा{01}

में दिए गए भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को देखें तो इसमें व्यक्ति अपने विचारों
को गीत संगीत पेंटिंग कार्टून नाच चुप रहकर आदि गतिविधियों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है तो कहें अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता बहुत ही व्यापक है\

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत सूचना का अधिकार को भी शामिल किया गया है
अभिव्यक्ति के अधिकार का भाग है सूचना का अधिकार अभिव्यक्ति के अधिकार का भाग है
जबकि यह सूचना का अधिकार राइट टो इनफॉरमेशन भारतीय संविधान के किसी भी भाग में उल्लेखित नहीं है

12 अक्टूबर 2005 को यह लागू हुआ राइट टो इनफॉरमेशन हम एक भारतीय सुप्रीम
कोर्ट से जुड़ा मामला देखेंगे

एसपी गुप्ता बंसल भारत  संघ

कोर्ट ने भले ही सूचना के अधिकार का जिक्र भारतीय संविधान के किसी भी आर्टिकल में नहीं है
लेकिन आर्टिकल 19 की धारा 1 द्वारा दी गई भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
में अभिव्यक्ति का ही भाग है कैसे अभिव्यक्ति का भाग है इसको ध्यान से देखेंगे किसी विचार पर बोलने के लिए उस
मुद्दे से संबंधित हमारे पास सूचना रहना चाहिए इस प्रकार यह स्वतंत्रता मूल संविधान में नहीं है
लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 की धारा 1 तहत दी गई भाषण एवं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत सूचना का अधिकार को भी शामिल किया गया है
स्वतंत्रता के अधिकार के तहत दिए गए

दूसरे स्वतंत्रता की बात करें बिना हथियारों के शांतिपूर्ण बैठने यह सम्मेलन
करने की स्वतंत्रता

इसके तहत एक केस फिर से सुप्रीम कोर्ट में आया सिख धर्म के लोगों द्वारा कृपाण रखना क्या
यह भारतीय संविधान का उल्लंघन नहीं है इसमें कोर्ट ने कहा इनके लिए अनुच्छेद 25 में लिखा हुआ है
कि धर्म के अनुकूल
आचरण करने की स्वतंत्रता हर नागरिक को है तो इस वजह से यह बिना हथियारों के
शांतिपूर्ण बैठने सम्मेलन करने का स्वतंत्रता का उलन उल्लंघन नहीं करता

तीसरी स्वतंत्रता की बात करें संघीय संगठन बनाने की स्वतंत्रता
एक और केस देखेंगे हम यहां नवीन जिंदल वर्सेस भारत संघ के मामले नवीन जिंदल
मनमोहन सरकार के समय कांग्रेस के बड़े मंत्री हुआ करते थे और यह उद्योगपति भी थे इन्होंने भाषण और अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता के तहत अपने कंपनी में राष्ट्रीय ध्वज लगाया इस पर जनता ने इस को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी कोर्ट ने कहा
राष्ट्रीय ध्वज अपने घर में लगाना या फहराना आर्टिकल 19 की धारा 1 के तहत दिए गए भाषण एवं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भाग है और यह भारतीय संविधान का किसी भी तरह से उल्लंघन नहीं करता

स्वतंत्रता के अधिकार के तहत हम चौथे अधिक अधिकार की बात करते हैं

घूमने फिरने की स्वतंत्रता

रहने या बसने की स्वतंत्रता

वाणिज्य की स्वतंत्रता है

या व्यापार की स्वतंत्रता मूल संविधान में आर्टिकल 19 के अंतर्गत हमारे
पास सात प्रकार के स्वतंत्रता थी
जिसमें संपत्ति अर्जित करने की स्वतंत्रता को 44 वा संविधान संशोधन  1978 के अंतर्गत
समाप्त कर दिया गया अब आर्टिकल 19 में केवल 6 प्रकार के स्वतंत्रता का उल्लेख है 1978 के समय मोराजी देसाई की
सरकार हुआ करते थे
इसी संविधान संशोधन में मूल संविधान के साथ मौलिक अधिकारों में से एक को हटाकर छह
मौलिक अधिकार का कर दिया गया संपत्ति प्राप्त करने की मूल अधिकार को समाप्त किया गया
आर्टिकल 19 की धारा 2 में

से आर्टिकल 19 के द्वारा छह तक अनुच्छेद 19 की धारा 1 अंतर्गत स्वतंत्रता में किस प्रकार रोक
लगाई जाए इसका उल्लेख है आर्टिकल 19 की धारा नहीं है भारतीय संविधान कहता है यदि आर्टिकल 19 की
धारा से देश की एकता देश की अखंडता देश की सुरक्षा को यदि किसी भी प्रकार का खतरा पहुंचता है तो आर्टिकल 19
के द्वारा दिए गए स्वतंत्रता पर रोक लगाई जा सकती है साथ ही इस स्वतंत्रता के कारण हमारे किसी देश के साथ
संबंध को ठेस पहुंचता है तब भी इस पर रोक लगाई जा सकती है साथ ही यदि अपराधों में वृद्धि हो रही हो लोक व्यवस्था
को नुकसान पहुंचता होयदि न्यायपालिका का अवहेलना हो रहा हो तो ऐसी भी स्थिति में इन स्वतंत्रता पर रोक लगाई
जा सकती है

एग्जांपल जैसे राजस्थान में सांप्रदायिक दंगा बुद्ध वाला केस एक गांव साम्राज्य
में इंटरनेट की मदद से बात की गई थी

अब हम आर्टिकल 20 की बात

करते हैं आर्टिकल 20 तीन प्रमुख बातों का उल्लेख करता है
01.कोई व्यक्ति अपराध करता है उस समय कानून उसके लिए क्या सजा देता इसी आधार
पर निर्णय दी जाती है ना कि नए कानून व्यवस्था के आधार पर 2008 में लाया गया मोदी
सरकार कि कानून जिसके तहत छोटे बच्चों के साथ रेप करने वाले रेपिस्ट को फांसी की सजा दी जाए




आर्टिकल 20 की धारा 02.
किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए दो सजा नहीं दी जाएगी अब हमारे पास एक बढ़िया
मामला सामने आता है

21 मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या

वाला के केस इसमें ट्रायल कोर्ट में मुकदमा चला ट्रायल कोर्ट ने हत्यारों को फांसी की सजा सुनाई
विपक्षी पार्टी ने मद्रास हाई कोर्ट में अपील की फांसी के खिलाफ 1998 मद्रास हाई कोर्ट ने इस मामले को
बरकरार रखा और इसकेखिलाफ यह लोग सुप्रीम कोर्ट में अपील की है 2004 में सुप्रीम कोर्ट निर्णय देते हुए कहा कि फांसी
की सजा को बरकरार रखा उसके बाद भी यह लोग राष्ट्रपति के पास क्षमा याचना के लिए गए हमें याद रहना चाहिए
कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 हमें राष्ट्रपति के  कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति के समक्ष दया याचना डाल सकता है
इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी राष्ट्रपति के समक्ष क्षमा याचना रखें राष्ट्रपति ने 2004 से 2011 तक 7
साल तक कोई निर्णय नहीं दिया कि इन्हें फांसी की सजा मिलनी चाहिए या नहीं सिर्फ उसका हां या ना कहने में
7 साल लगगए विपक्षी
पार्टी ने राष्ट्रपति के इस निर्णय के खिलाफ मद्रास मद्रास हाई कोर्ट में दोबारा अपील की और
मद्रास हाई कोर्ट ने फांसी की सजा पर रोक लगा दी

आधार आर्टिकल 20 की धारा दो मद्रास हाई कोर्ट ने कहा राजीव गांधी की हत्या होती है
1991 मेंऔर राष्ट्रपति के समक्ष क्षमा याचना का सन 2011

01. इस दौरान अपराधियों को 20 साल जेल में रहने की सजा एक हो गई
02.उन्हें फांसी की सजा देकर मानसिक प्रताड़ना दिया गया यह दूसरी सजा हो गई
03. 1994 में फांसी फांसी की सजा मिली 17 साल बाद यह फांसी नहीं यह मानसिक
प्रताड़ना की सजा है और यह तीसरी सजा हो गई और जो था
04.2004 से लेकर 2011 तक राष्ट्रपति सिर्फ यह सोचने में समय व्यतीत कर दिया कि
इन्हें फांसी दी जानी चाहिए या नहीं यह चौथी सजा हो गई
जबकि हमारे भारतीय संविधान यह कहता है कि किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए केवल
एक ही सजा दिया जा सकता है और यहां तो पूरे 4 सजे पूरे हो गए इस प्रकार मद्रास हाई
कोर्ट आर्टिकल 20 की धारा दो के तहत उनकी फांसी पर रोक लगा दिया

आर्टिकल 20[03]

किसी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाही देने पर  बाघ्य नहीं किया जा सकता इसमें हम बड़ा ही
दिलचस्प मामला देखेंगे सेल्वी वर्सेस कर्नाटक राज्य के मामला आजकल बड़ा ही आधुनिक युग चल रहा है
और इसमें अलग-अलग प्रकार की टेस्ट कराए जाते हैं सच्चाई बोलने के लिए  अपराधी की मानसिकता
को यार ध्यान करते हुए इस केस में एक बड़ा ही
दिलचस्प निर्णय सुप्रीम कोर्ट के सामने आया उन्होंने कहा कि वह सारे टेस्ट जैसे कि झूठ
पकड़ने वाली मशीन यह व्यक्ति को खुद के प्रति गवाही देने को मजबूर करता है इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 की
धारा 3 किसी
व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाही देने को पर बाध्य नहीं किया जा सकता इस बात का उल्लंघन करता है
इस कारण इन सारे टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी
पर यदि अपराध महिलाओं के मामले पर हो देश के मामले पर हो तो सारे टेस्ट
कराए जा सकते हैं

ARTICAL 21

सभी लोगों को जीने का अधिकार देता है दैहिक
अधिकार उसे मकान बनाने का अधिकार शुद्ध हवा पानी का अधिकार शुद्ध पर्यावरण का
अधिकार भी शामिल है इसमें एक फिर से हम एक नया मामला देखेंगे

मेनका गांधी वर्सेस इंडिया
मेनका गांधी जो कि संजीव गांधी की पत्नी है 1978 में सरकार ने मेनका गांधी का
पासपोर्ट जप्त कर लिया इस मामले को
मेनका गांधी ने कोर्ट में चुनौती दी मेनका गांधी ने कहा मौलिक अधिकार का हनन है आर्टिकल 21 के तहत जो हमें
जीने का अधिकार देता है इस पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया विदेश जाने के अधिकार को भी
आर्टिकल 21 के भाग माना जाएगा इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि आर्टिकल 21 कितना व्यापक है

मामला देखें   Putta स्वामी वर्सेस इंडिया

इस मामले में राइट टू प्राइवेसी निजता के अधिकार को 2017 में आधार कार्ड के मामले में निजता
के अधिकार के तहत इसे भी अनुच्छेद 21 भाग माना गया

भारतीय संविधान मरने का अधिकार नहीं देता पर यदि हम जीने में बहुत ही ज्यादा कष्ट
है और व्यक्ति मरना चाहता है
कुछ ही स्थिति में तब उसे यह कदम उठाया जा सकता है हम एक मामला देखेंगे कि भारतीय संविधान
मरने की स्वतंत्रता देता है या नहीं

अरुणा सन वर्सेस भारत संघ

एक महिला नर्स है और यह मामला 40-41 साल पहले मुंबई में वहां के कर्मचारी द्वारा रेप किए जाने वाले
 नर्स कोमा में चली गई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया पिंकी विरानी उस
मामले के वकील थी मरने का अधिकार की मांग की ऐसी
court  ने कहा हमारा संविधान जीने का अधिकार देता है मरने का नहीं लेकिन कोई व्यक्ति को
असाध्य बीमारी हो जाए और 4 डॉक्टर यदि मेडिकल लिखकर दे दे तो मरने का अधिकार दिया जा सकता है

एम सी मेहता वर्सेस भारत संघ में
कोर्ट ने शुद्ध पर्यावरण को आर्टिकल 21 का भाग माना है

निद्रा का अधिकार धारा 144  के अंतर्गत
अंतर्गत अनुच्छेद 21 में शामिल है गिरफ्तार होने के क्या क्या अधिकार है

आर्टिकल 22

आर्टिकल 22 भी हमें बहुत सारे अधिकार देता है

01.जैसे गिरफ्तारी के कारण जानने का अधिकार
02. मजिस्ट्रेट के समक्ष 24 घंटे के अंदर उपस्थित होने का अधिकार
03.के अपने गिरफ्तारी की सलाह लेने का अधिकार देता है

यह तीनों बातें निरोधक कानून के अंतर्गत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति पर लागू नहीं होती एक
उदाहरण देखेंगे पोटा राजिया कोका हुच्चा को क्या मकोया साथ ही यह अधिकार किसी दुश्मन देश के अपराधी व्यक्ति पर
लागू नहीं होती

निरोधक कानून के अंतर्गत

किसी व्यक्ति को 3 महीने तक आप जेल में नहीं रख सकते यदि 3 महीने से ज्यादा
उसे जेल में रखना है तो इस स्थिति
में एक कमेटी बनाना होगा और उस कमेटी के अध्यक्ष था वह व्यक्ति करेगी
01. जो हाई कोर्ट में जज हो
02.यह जज रह चुका हो
03.यह बनने की क्षमता रखता हो

आर्टिकल 21 की धाराएं ए



मतलब बाद में जोड़ा गया यह हमें फ्री एंड कंपलसरी एजुकेशन बिटवीन द एज ग्रुप ऑफ
6 to 14 इयर्स ऑफ़ चाइल्ड
आर्टिकल 21 की धारा [A] 86 वा संविधान संशोधन द्वारा अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने
भारतीय संविधान में जोड़ा जो 6 से लेकर 18 वर्ष तक के सभी बच्चों को फ्री एंड कंपलसरी
एजुकेशन की बात करती है लेकिन यह 16 से लेकर 14 ही रह गया

आज हमने स्वतंत्रता के अधिकार के तहत आर्टिकल 19 से
लेकर आर्टिकल 22 तक बखूबी अध्ययन किया साथ ही हमने
इनसे जुड़े कई प्रकार के मामले देखे मेरे विचार से यह पोस्ट
आपको पसंद आया होगा और आप अपने अधिकार अपनी
स्वतंत्रता के बारे में अच्छे से जाने होंगे फिर मिलते हैं अगले पोस्ट
में जो शोषण के विरुद्ध एवं धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
है आप इसी तरह प्यार बनाए रखें आपको बहुत-बहुत धन्यवाद ……………………………...PK25NG

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