महान्यायवादी और महाधिवक्ता (AG Attorney General and Advocate General)

चलिए आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं महान्यायवादी और महाधिवक्ता की 




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भारत सरकार के खिलाफ भी बहुत सारे केस कोर्ट में चल रहे होते हैं इस स्थिति में सरकार को सलाह व परामर्श देता है महान्यायवादी क्योंकि विधि से संबंधित जानकारी जानकारी बड़ी जटिल होता है जिस प्रकार एक आम आदमी अपनी पैरवी कोर्ट में रखने के लिए वकील रखता है इसी तरह राज्यों में यह विधि में सलाह व परामर्श देने के लिए महाधिवक्ता होता है 


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आर्टिकल 76 भाग 5 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा महान्यायवादी की नियुक्ति की जाती है यह भारत का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है 


इसकी योग्यता के बारे में क्या कहना है

 वह व्यक्ति जो सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो उसे महान्यायवादी के पद पर बैठाया जाता है इन को हटाने के  संदर्भ में संविधान पर कुछ नहीं लिखा है





 आर्टिकल 124 की आर्टिकल 124 सुप्रीम कोर्ट का उल्लेख सुप्रीम कोर्ट में जज की संख्या व सुप्रीम कोर्ट  में जज बनने की योग्यता बताई गई है 

वह भारत का नागरिक हो वह व्यक्ति जो पिछले 5 वर्षों से हाईकोर्ट में न्यायाधीश हो यह किसी हाईकोर्ट में पिछले 10 वर्षों से अधिवक्ता हो या राष्ट्रपति की नजर में यदि वह कानून का जानकार हो तब भी उसको सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया जा सकता है 




महान्यायवादी संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं और उन्हें राष्ट्रपति दिलाते हैं 



महान्यायवादी का कार्यकाल 

आर्टिकल 76( 4) के तहत महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत  पर रहेगा यह मंत्रिपरिषद की सलाह पर होगा उनको हटाने के संदर्भ में   संविधान में कुछ नहीं लिखा है


 भारत में तीन अधिकारियों को विधि अधिकारी माना गया है


 पहला भारत का महान्यायवादी 
दूसरा भारत का महाधिवक्ता
 तीसरा भारत का अपर महाधिवक्ता


 इन सब में महान्यायवादी सर्वोच्च स्तर पर है महान्यायवादी की शक्तियां व कार्य Article 76(3 ) में भारत सरकार को विधि संबंधित सलाह देने का काम करते हैं राष्ट्रपति द्वारा महान्यायवादी को अन्य मामलों में सलाह देने का काम करते हैं किसी भी न्यायालय में भारत सरकार का पक्ष रख सकता है


 आर्टिकल 88


 महान्यायवादी संसद के दोनों सदन में भाग ले सकता है उसे संबोधित भी कर सकता है वह संसद के किसी समिति का सदस्य भी हो सकता है लेकिन उन्हें मत देने का अधिकार नहीं होता 

  Important fact 

भारत की पहली महान्यायवादी MC SEETALWAD 1950 से 1963 तक रहे 

जो सर्वअधिक कार्यकाल इनका रहा 13 वर्षों का उसके बाद सीके बख्तरी 1963 से 1968 तक 

वर्तमान में 15वें नंबर के महान्यायवादी के के वेणुगोपाल जो कि 2017 से अभी तक बनी हुई हैं

 इससे पहले मुकुल रोहतगी 2014 से लेकर 2017 तक रहे 

सबसे कम कार्यकाल सोली सोराबजी 1989 से 1990 तक काम किए 

11 वर्ष तक नीरज डे महान्यायवादी थे 1968 से 1977 तक 

मिलन कुमार बनर्जी दो बार महान्यायवादी रह चुके हैं 1996 से 2009 


 इंडिया में 25 हाई कोर्ट और एक सुप्रीम कोर्ट में महान्यायवादी की सहायता देने के लिए महाधिवक्ता होते हैं जो कि इस स्टेट में रहते हाईकोर्ट के हिसाब से रहते हैं इसका उल्लेख संविधान  मैं नहीं मिलता यह लोग भी इंडियन गवर्नमेंट की पैरवी करते हैं 



महान्यायवादी का वेतन का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा जो कि संचित निधि से दिया जाता है महान्यायवादी लोक सेवा की परिभाषा से नहीं आती क्योंकि राइट टू इनफार्मेशन एक्ट 2005 लागू नहीं होता संबंधित सूचना प्राप्त नहीं कर सकते वह प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकते हैं लेकिन ऐसे ही मामले की पैरवी नहीं कर सकते जो भारत सरकार के खिलाफ हो पद पर रहते हुए इसके लिए इंडियन गवर्नमेंट से परमिशन की जरूरत पड़ती है



 लेकिन मत देने का अधिकार नहीं होता 


मध्य प्रदेश के महाधिवक्ता     --   Shashank Shekhar


राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1957 सातवां कॉन्स्टिट्यूशन sanvidhan sanshodhan dwara अपने कार्यकाल के दौरान   संसद सदस्यों को प्राप्त होने वाले सभी विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं


 आर्टिकल 143 सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार का प्रतिनिधि  करें 




आज हमने महान्यायवादी और महाधिवक्ता के बारे में जाना इसके अगले अध्याय में हम बात करेंगे संसदीय समितियों के बारे में अब तक आप अपना ख्याल रखें धन्यवाद

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