भारत का राष्ट्रपति भाग 4(The president of India part 4 )
इन दिनों हम भारत के राष्ट्रपति के बारे में चर्चा कर रहे हैं इसके तहत कल हमने भारत के राष्ट्रपति की शपथ उसका कार्यकाल और को दी जाने वाली विशेष अधिकार के बारे में चर्चा किया था आज इसी को हम आगे बढ़ाते हुए भारत के राष्ट्रपति को हटाने की विधि यानी कि महाभियोग और और कंडीशन के बारे में और अच्छे से समझेंगे भारत के राष्ट्रपति को किस स्थिति में हटाया जाता है इसकी भी चर्चा करेंगे और कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति को दी जाती हैं राष्ट्रपति के पास होता है
ध्यान से देखते हैं और शुरू करते हैं राष्ट्रपति को हटाने की विधि यानी कि
महाभियोग
के बारे में राष्ट्रपति को हटाने की विधि को ही महाभियोग कहते हैं भारत के किसी अन्य नागरिक को हटाने की विधि वियोग कहलाता है और महाभियोग शब्द केवल राष्ट्रपति के लिए उपयोग किया जाता है इसको हम बखूबी से जानने के लिए हम
आर्टिकल 56 और 61 को देखते हैं
आर्टिकल 56 महाभियोग लाने को बताता है मतलब किस स्थिति में महाभियोग लाया जाएगा जबकि आर्टिकल 61 महाभियोग की प्रक्रिया को बताता है जो हमने अमेरिका के राष्ट्रपति से इस विधि को लिया है
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प्रक्रिया एक ही बात को लेकर लाया जा सकता है जब राष्ट्रपति पर आरोप हो कि वह संविधान का उल्लंघन ( Volution of the Constitution)किया है यानी कि राष्ट्रपति के विरुद्ध missbehevior का आरोप नहीं लगाया जा सकता और इन दोनों को बहुत अच्छे से समझाते हैं
संसद के कोई भी हाउस में महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है लेकिन किसी भी हाउस का कुल सदस्य संख्या का 1/4 सदस्य की सहमति हो इस शिकायत में चर्चा होने वाला हो उससे थ 14 दिन पहले राष्ट्रपति को इसकी सूचना देना अनिवार्य होता है कि आप के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव संसद में लाया गया है प्रस्ताव में चर्चा से पहले यह सारी चीजें राष्ट्रपति को बतानी होती हैं राष्ट्रपति अपना पक्ष रख सकते हैं इसमें वह किसी वकील व प्रतिनिधि को अपना पक्ष रखने के लिए भेज सकते हैं सूचना राष्ट्रपति को दोनों सदन के अध्यक्ष देते हैं बात यह है कि महाभियोग प्रस्ताव किस सदन में लाया गया लोकसभा में यदि यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया गया तक लोकसभा का अध्यक्ष इसकी सूचना राष्ट्रपति को 14 दिन पहले ही देता है लेकिन यदि यह प्रस्ताव राज्यसभा में लाया गया तब भी राज्यसभा का अध्यक्ष इसकी सूचना 14 दिन पहले राष्ट्रपति को देता है
राष्ट्रपति अपनी वक्तव्य देते हैं फिर भी संबंधित हाउस इससे संतुष्ट नहीं नहीं हैं और टोटल मेंबर का दो तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पारित कर देता है तो यह प्रस्ताव दूसरे हाउस में जाती है और वहां भी दो तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पारित हो जाता है तब ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को अपना पद खाली करना पड़ता है
इसमें हम कुछ महत्वपूर्ण चीजों का जरूर ध्यान रखना चाहिए जैसे इनमें प्रस्ताव में भाग लेने वाले सदस्य संसद के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं लेते पर महाभियोग प्रक्रिया में भाग लेते हैं यह बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है राष्ट्रपति के महाभियोग का 29 राज्यों के विधानसभा के सदस्य और दिल्ली पांडुचेरी और जम्मू एंड कश्मीर विधानसभा के सदस्य भी इस चुनाव में भाग तो लेते हैं लेकिन महाभियोग में भाग नहीं लेते
महाभियोग प्रक्रिया को अर्ध न्यायिक प्रक्रिया कहते हैं ऐसा
क्यों बोला जाता है कारण की बात करें तो हम दो तीन चीजों को इसमें अच्छे से समझते हैं राष्ट्रपति को यदि न्यायपालिका यह सुप्रीम कोर्ट हटाती तब इसे हम न्यायिक प्रक्रिया कहते हैं संसद हटाती विधायक प्रक्रिया कहते हैं हमारे विधायिका में जब महाभियोग प्रस्ताव लाया जाता है तब विधायक का न्याय प्रक्रिया का रूप ले लेती है यही दो कारण की वजह से इसे हम अर्ध न्यायिक प्रक्रिया कहते हैं
यदि लोकसभा से पारित हो गया लेकिन राज्यसभा में इसकी जांच करने के लिए राज्य सभा कमेटी बैठती है और कमेटी बना सकती हैं और इसके पास न्याय करने की क्षमता होती है
लोकसभा में यदि यह बिल पारित हो गया और राज्यसभा में पारित नहीं हुआ महाभियोग प्रस्ताव तुरंत ही वही रद्द कर दिया जाता है लेकिन दूसरी हाउस किसी भी स्थिति में संयुक्त अधिवेशन नहीं बुलाया जाता है ऐसी स्थिति में क्या कारण हो सकता है लोकसभा में 545 सदस्य हैं और राज्यसभा में 245 प्रस्ताव में लोकसभा की सदस्य संख्या संयुक्त अधिवेशन में भी आ सकती है दोनों सदनों को महाभियोग प्रक्रिया में बराबर दर्जा देने के लिए ऐसा नहीं किया जाता अभीतक महाभियोग प्रक्रिया राष्ट्रपति पद पर नहीं लाया गया और शायद यही हमारी भारतीय संविधान की खूबसूरती है लेकिन यह बिल्कुल हम नहीं कह सकते क्या नहीं जा सकता क्या कारण हो सकते हैं लाने का आपने पहले ही बखूबी से ध्यान कर लिया है आने वाले भविष्य में भी कभी ऐसा होता है तो हम जरूर महाभियोग प्रक्रिया का पालन करेंगे
राष्ट्रपति पद से इस्तीफा या कार्यकाल पूरा हो जाने पर वह दोबारा मंत्री पद पर चुनाव लड़ सकता है
कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति को दी जाती हैं
उसको हम विस्तार से चर्चा करते हैं राष्ट्रपति अपनी सारी शक्तियों का उपयोग मंत्रिपरिषद की सलाह प्रधानमंत्री भी उसमें शामिल है पर करता है राष्ट्रपति को स्वविवेक की शक्तियां प्राप्त होती हैं
देखने
पर हमारे संविधान में इन सभी स्व: विवेकी शक्तियों का उल्लेख देखने को नहीं मिलता पर राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं आर्टिकल 74 इस बात को अच्छे से बताता है
कार्यपालिका से संबंधित दूसरा आर्टिकल 53 है जो यूनियन गवर्नमेंट की कार्यपालिका शक्तियों को राष्ट्रपति के पास होती है यह इन शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति अपने अधीनस्थ मंत्री परिषद अधिकारियों के सहयोग से करेगा इस बात का उल्लेख करता है
आर्टिकल 75
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करेंगे लेकिन प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत दल का नेता को प्रधानमंत्री के लिए नियुक्त करता है तो वह होना चाहिए लोकसभा टोटल मेंबर 545 और जो 2 सदस्य होते हैं उसको राष्ट्रपति मनोनीत करता है 543 मैसेज इस गठबंधन के पास 272 सीट होगी वही बहुमत दल होगा यदि लोकसभा में स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में राष्ट्रपति की शक्तियों का प्रयोग कर वह किसी भी पार्टी या दल को सरकार बना सकती है चाहे वह बड़ा दल का नेता हो या गठबंधन की सरकार राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को शपथ दिलाता है राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को शपथ दिलाएंगे इसका उल्लेख संविधान में किसी अनुच्छेद में नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री तो मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करते हैं प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति अन्य मंत्रियों को नियुक्त करते हैं और उन्हें शपथ भी दिलाएंगे प्रधानमंत्री को यह शक्ति प्राप्त होती है कि वह किन किन लोगों को मंत्री के लिए नॉमिनेट कर राष्ट्रपति के पास सूची भेजते हैं साथ ही कौन सी मंत्री को कौन सा पद दिया जाए प्रधानमंत्री की तय करता है इसमें राष्ट्रपति की कोई भूमिका नहीं होती
मंत्री हमेशा पद की शपथ लेता है ना कि विभाग की आर्टिकल 77 संघ सरकार के सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किए जाएंगे
इस बात को बताता है राष्ट्रपति इन मंत्रियों की कार्य आवंटन मतलब जो प्रधानमंत्री द्वारा चुने गए मंत्रियों के कार्य के नियम बनाएंगे इसका भी उल्लेख मिलता है साथ ही अलग-अलग पदों के हिसाब से बहुत सारे नियम बनाने पड़ते हैं राष्ट्रपति बनाएगा
आर्टिकल 74
वहीं कार्य राज्यपाल और मुख्यमंत्री के संदर्भ में आर्टिकल 167 में उल्लेख है आर्टिकल 78 राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के को अच्छी तरह से प्रभावित करता है राष्ट्रपति प्रधानमंत्री शासन व्यवस्था प्रशासन व्यवस्था की जानकारी ले सकता है राष्ट्रपति विधि निर्माण की जानकारी ले सकता है राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को बुलाकर किसी मुद्दे पर मंत्रिपरिषद में चर्चा करवाने को कह सकते हैं
प्रधानमंत्री का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वे राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सारी सूचनाएं उपलब्ध करवाई इन सारी बातों का उल्लेख आर्टिकल 78 में मिलता है इसके लिए प्रधानमंत्री आयोग भी नियुक्त कर सकता है राष्ट्रपति सेंट्रल गवर्नमेंट और स्टेट गवर्नमेंट इन राज्यों के सहयोग को बढ़ावा देने के लिए इंटर स्टेट काउंसिल का निर्माण कर सकता है
आर्टिकल 263 प्रशासन के माध्यम से यूनियन टेरिटरीज का प्रत्यक्ष रूप से संभालता है राष्ट्रपति किसी भी क्षेत्र को sc/ st क्षेत्र घोषित कर सकता है
आज के लिए बस इतना ही पढ़ते हैं कल हम पढ़ेंगे कार्यपालिका शक्तियों के अंतर्गत आने वाले और शक्तियां कौन है जो राष्ट्रपति को के पास होती है साथ ही राष्ट्रपति की शक्तियां के बारे में भी अच्छे से बात करेंगे मिलते हैं next आर्टिकल में तब तक अपना ख्याल रखें और बने रहिए राष्ट्रपति टॉपिक पर ............ Pk25ng
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