धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार का जिक्र अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक किया गया है
हम अनुच्छेद 25 से स्टार्ट करते हैं
अनुच्छेद 25
धर्म के संदर्भ में उपलब्ध अधिकार के बारे में बात करता है और यह किस स्थिति में प्राप्त होंगे
इसका भी उल्लेख करता है सभी नागरिकों को अपने अपने धर्म को मानने का अचार प्रचार करने का
और धर्म में लिखी हुई बातों के अनुसार आचरण करने तथा अंतःकरण का स्वतंत्रता का उल्लेख करता है इसके अंतर्गत सभी नागरिक अपने धर्म की पूजा-अर्चना कर सकते हैं धर्म के अनुरूप आचरण
करने की स्वतंत्रता भी अनुच्छेद 25 सभी नागरिकों को देता है इसी कारण सिख धर्म में कृपाण रखना
धर्म के प्रति अनुकूल आचरण के अंतर्गत आता है
हम यहां एक बहुत ही दिलचस्प मामला देखिए
शाहना बानो वर्सेस भारत 2017
एग्जांपल देखेंगे मध्य प्रदेश के इंदौर की पांच वर्षीय 62 वर्षीय मुस्लिम माँ शाह बानो का उनके
पति ने 1978 में तलाक कर दिया था। [1] उसने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक आपराधिक
मुकदमा दायर किया, जिसमें उसने अपने पति से गुजारा भत्ता का अधिकार जीता।
हालांकि, मुस्लिम राजनेताओं ने फैसले के निराकरण के लिए एक अभियान चलाया। भारतीय संसद ने
इस्लामी रूढ़िवाद के दबाव में फैसले को उलट दिया। इस मामले में महिला के पक्ष में फैसले ने
आलोचनाओं को जन्म दिया मुसलमानों में से कुछ ने कुरान का हवाला देते हुए कहा कि यह निर्णय
इस्लामी कानून के विरोध में था। इसने भारत में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग नागरिक
संहिता होने के बारे में विवाद को जन्म दिया] इस मामले के कारण कांग्रेस सरकार को पूर्ण बहुमत के साथ मुस्लिम महिलाओं (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को पारित करना पड़ा जिसने
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को कमजोर कर दिया और मुस्लिम तलाकशुदा के अधिकार को केवल
अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता तक सीमित कर दिया। तलाक के 90 दिन बाद (इस्लामिक कानून में
ईदगाह की अवधि हालांकि, डैनियल लतीफी मामले और शमीमा फारूकी बनाम शाहिद खान मामले
सहित बाद के फैसलों में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की वैधता को आश्वस्त करने वाले
तरीके से अधिनियम की व्याख्या की और इसके परिणामस्वरूप शाह बरी के फैसले और मुस्लिम
महिलाओं (संरक्षण) को बरकरार रखा। तलाक पर अधिकार) अधिनियम 1986 को रद्द कर
दिया गया था। ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कई मुसलमानों ने तलाकशुदा मुस्लिम
पत्नी के रखरखाव के अधिकार को सर्वोच्च बनाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का समर्थन किया।
अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम एंड ऑर्स। या शाह बानो रखरखाव मामले को मुस्लिम महिलाओं
के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी मील के पत्थर के रूप में देखा जाता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने
मामले में गुजारा भत्ता के अधिकार को बरकरार रखा, फैसले ने राजनीतिक लड़ाई के साथ-साथ अदालतों
को मुस्लिम पर्सनल लॉ में किस हद तक दखल दिया, इस पर विवाद खड़ा हो सकता है। इस मामले ने नियमित अदालतों में विवाह और तलाक के मामलों में समान अधिकारों के लिए मुस्लिम महिलाओं की
लड़ाई के लिए आधार तैयार किया, सबसे ताजा उदाहरण शायरा बानो का मामला है जिसमें सुप्रीम
कोर्ट ने तत्काल ट्रिपल तालक की प्रथा को अमान्य कर दिया।
संथारा प्रथा
आर्टिकल 25 क्योंकि उनके अनुरूप है जैन धर्म में वृद्धावस्था में जल देना बंद कर दिया जाता है तो यहां व्यक्ति अपने आप को मौत की ओर ले जाता है
जबकि अनुच्छेद 21 हमें जीने की का अधिकार देता है मरने का नहीं तो यहां तो सीधे-सीधे मरने की बात
कही जा रही है तो क्या अनुच्छेद 21 का उलंघन नहीं करता लेकिन इस बात को नहीं मानते इस प्रकार
राजस्थान हाई कोर्ट में अनुच्छेद21 अंतर्गत रोक लगा दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा धर्म के अनुरूप है
और रोक हटा ली गई
इस अधिकारों की सीमा लोक न्याय व्यवस्था सदाचार स्वास्थ्य के अंतर्गत रहते हुए वह चारों प्रकार की
स्वतंत्रता होगी अनुच्छेद 25 यदि आप किसी दबाव या आर्थिक प्रलोभन में धर्म परिवर्तन करते हैं तो इस
स्थिति में राज्य धर्म परिवर्तन पर रोक लगा सकता है धर्म परिवर्तन करने का अधिकार का उल्लेख कहीं
नहीं मिलता अनुच्छेद 25 में हिंदू धर्म के अंतर्गत सभी मंदिर सार्वजनिक तौर पर खुले रहेंगे यहां हिंदू
शब्द का मतलब सभी धर्मों से है जैसे जैन बौद्धिक
यहां हम दूसरा मामला देखेंगे
सबरीमाला विवाद
केरल राज्य का बहुत ही बड़ा विवाद है इस में सुप्रीम कोर्ट का क्या निर्णय आया
और यह मामला क्या था इसको भी अध्ययन करेंगे अनुच्छेद25 के अंतर्गत लिखी बातों का उल्लेख करता है
पांच महिला वकीलों के एक समूह ने केरल हिन्दू प्लेसेज ऑफ पब्लिक पूजा (प्रवेश का अधिकार)
नियम, 1965 के नियम 3 (बी) को चुनौती दी है, जो महिलाओं के "मासिक धर्म की उम्र" पर
प्रतिबंध को अधिकृत करता है। केरल HC द्वारा सदियों पुरानी रोक को बरकरार रखने के बाद उन्होंने
शीर्ष अदालत का रुख किया और फैसला सुनाया कि परंपराओं पर निर्णय लेने के लिए केवल "तंत्र
(पुजारी)" को ही अधिकार दिया गया था।
केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला शुक्रवार को सुनाया
जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि सभी आयु वर्ग की महिलाएं, केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश
कर सकती हैं। शीर्ष अदालत ने 4: 1 बहुमत में कहा कि मंदिर प्रथा हिंदू महिलाओं के अधिकारों का
उल्लंघन करती है और धर्म में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना लैंगिक भेदभाव है। भारत के
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच-न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने कहा कि
केरल हिंदू सार्वजनिक उपासना स्थल (प्रवेश का अधिकार) नियम, 1965 में प्रावधान, जिसने प्रतिबंध
को अधिकृत किया कि धर्म का पालन करने के लिए हिंदू महिलाओं के अधिकार का उल्लंघन
हुआ। ।
भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस आर एफ नरीमन, ए एम खानविलकर, डी वाई
चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा की अगुवाई वाली पीठ ने इस साल 2 अगस्त को मामले में अपना फैसला
सुरक्षित रख लिया था।
भगवान अयप्पा को समर्पित मंदिर, केरल के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। त्रावणकोर देवस्वोम
बोर्ड (टीडीबी) मंदिर का प्रबंधन करता है। यह संभावना है कि राज्य भर में सभी मंदिरों और उनके
रीति-रिवाजों पर शासन का प्रभाव पड़ेगा।
अनुच्छेद 26
या निम्न बातों का उल्लेख करता है सभी नागरिकों को अपने धार्मिक संस्थाओं को स्थापित करने उसका
प्रबंधन करने जंगम स्थावर संपत्ति को अर्जित करने यहां जंगम और स्थावर का मतलब चल और अचल
संपत्ति को अर्जित करने वाह उनका समुचित उपयोग करने का अधिकार होगा इस बात को बताता
लेकिन उसकी सीमाएं क्या होंगी इसका भी उल्लेख करता है
सीमाएं लोक व्यवस्था को नुकसान नहीं होना चाहिए सदाचार हो हुआ स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने
वाला ना हो
अनुच्छेद 27 यह किसी धर्म को मानने व उससे किसी प्रकार का tex न वसूलने का अधिकार देता है
सरकार धर्म के नाम पर किसी धर्म को बढ़ावा देने व किसी भी प्रकार का tax के लिए नागरिक को
बाध्य नहीं करेगी
28 अनुच्छेद यह कहता है कि सामान्य सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं पर धार्मिक शिक्षा नहीं दी
जा सकती लेकिन ऐसी संस्था जो सरकारी धर्म के उद्देश्यों को लेकर स्थापित की गई थी वहां पर रोक \
नहीं है
जैसे मद्रास हाईकोर्ट द्वारा तमिलनाडु के सभी शिक्षण संस्थानों में वंदे मातरम को अनिवार्य कर दिया गया यह मामला में भी कोर्ट में गई थी कोर्ट ने कहा वंदे मातरम कोई धर्म से संबंधित नहीं है और यह किसी भी
प्रकार का अनुच्छेद 28 में दिए गए बातों को उलंघन नहीं करता
उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ की सरकार ने मदुरसा में राष्ट्रगान को अनिवार्य कर
दूसरा उदाहरण उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ की सरकार ने मदुरसा में राष्ट्रगान को अनिवार्य कर
दिया उसके खिलाफ भी यह मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट मैं गया अल्लाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा यह
किसी भी प्रकार का धार्मिक शिक्षा नहीं है आज हमने धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार को पूरा किया
संबंधित अनुच्छेदों को बखूबी अध्ययन किया वह कई प्रकार के प्रथा तथा संबंधित मामलों का बखूबी
अधीन किया हमारा अगला पोस्ट शिक्षा व संस्कृति के अधिकार पर होगा आप इसी तरह प्यार बनाए रखें
बहुत-बहुत धन्यवाद !..........................................pk25ng
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