संवैधानिक उपचारों का अधिकार [ Right to Constitutional Remedies ]

                                    




संवैधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद 31 से शुरू होकर
अनुच्छेद 35 में जाकर खत्म होता है इसमें कुल 5 अनुच्छेद
को शामिल किया गया है चलिए शुरू करते हैं


अनुच्छेद 31 की बात करते हैं


अनुच्छेद 31 में संपत्ति का अधिकार था जिसे 44 वां संविधान संशोधन 1978 द्वारा विधिक अधिकार बना
दिया गया और
 इसे मौलिक अधिकार से समाप्त कर दिया गया संविधान के मौलिक अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट
अपनी याचिका जारी कर
सकता है विधिक अधिकार पर नहीं क्योंकि अनुच्छेद 31 संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार
है हमारा मूल अधिकार
नहीं इस वजह से सुप्रीम कोर्ट संपत्ति का अधिकार में याचिकाएं  जारी नहीं कर सकता


आर्टिकल 32 की बात करते हैं आर्टिकल 32 हमें निम्न प्रकार के मौलिक अधिकारों की बात करता है पहले के
पांच मौलिक अधिकार
 हो यदि किसी प्रकार का नुकसान या क्षति पहुंचाई जाए या किसी प्रकार से उल्लंघन किया जाए
तो ऐसी स्थिति में
संवैधानिक उपचारों का अधिकार हमारे पांचों अधिकारों की रक्षा कैसे करेगी इसका
उल्लेख मिलता है ]


आधुनिक मनु अंबेडकर साहब आर्टिकल 32 को भारतीय संविधान की आत्मा कहे


अनुच्छेद 303 एक अनुसार के द्वारा विधिक अधिकार बना दिया आर्टिकल 31 [A] [B] [C] भारतीय
संविधान संशोधन
1951 द्वारा नौवीं अनुसूची जोड़ी गई और इसी में अनुच्छेद 31 में [A] और [B] भी जोड़ा गया [


रुस्तम काबाजी वर्सेस भारत संघ


सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को असंवैधानिक घोषित कर दिया जबकि


1969 में इंदिरा गांधी की सरकार ने जो 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया तब इस संदर्भ में एक अध्यादेश जारी होती है सुप्रीम कोर्ट के द्वारा
अध्यादेश द्वारा जो
राजा महाराजाओं को सुविधाएं दी जाती थी वह भी बंद कर दी गई जबकि दूसरी मामला माधव राज सिंधिया
वर्सेस भारत
1970 सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी सरकार द्वारा राजा महाराजाओं को विशेष अधिकार दे रखी थी जो अध्यादेश
जारी किया
गया था असंवैधानिक घोषित कर दिया इंदिरा गांधी सरकार ने इसे नीति निदेशक तत्वों को आधार बताया और
असंवैधानिक
को देखते हुए उन्होंने कहा अनुच्छेद 31[A] [B] को नौवीं अनुसूची का आधार  बताया जिन्हें न्यायपालिका में
चुनौती नहीं दी
जा सकती और


इस तरह 25 वा संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 31[C] को जोड़ा गया अनुच्छेद 31[C]  कहता है यदि अनुच्छेद
14  और
अनुच्छेद 19 का टकराव यदि अनुच्छेद 39 जोकिं नीति निदेशक तत्व का अनुच्छेद है से होता है तो इस मामले में
अनुच्छेद 39 को मान्यता दी जाएगी कुछ नीति निदेशक तत्वों को मौलिक अधिकारों  पर मान्यता दी जा सकती है


अनुच्छेद 32 की धारा 2 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो याचिकाएं  जारी की जाती है इसका उल्लेख मिलता है अनुच्छेद
32 [2]के
तहत सुप्रीम कोर्ट जो याचिका जारी करती है


अनुच्छेद 32 की धारा 3 यह कहता है यदि बात मौलिक अधिकारों की हो रही हो तब संसद कानून बनाकर सुप्रीम
कोर्ट के अलावा
इस मामले के
याचिकाएं जारी करने का अधिकार अन्य न्यायालय को भी सकती है

          01   बंदी प्रत्यक्षीकरण
02, परमादेश
03. उत्प्रेषण
04. अधिकार प्रचछा
05. प्रतिषेध


बंदी प्रत्यक्षीकरण लैटिन शब्द   हेवीअस कार्पस जिसका शाब्दिक अर्थ सहित सहित किसी
को उपस्थित
करना है यह याचिका किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से बंदी बना लेने पर जारी की जाती है
परमादेश लैटिन शब्द मैडमस  शाब्दिक अर्थ आदेश देना सीमाएं कब जारी की जाएगी किसी
भी संस्था
के निर्धारित  कार्य है और वह संस्था निर्धारित कार्यों को नहीं करती तब सुप्रीम कोर्ट ऐसी
स्थिति में यह
याचिका का उपयोग कर सकता है


प्रतिषेध लैटिन शब्द प्रोविजन शाब्दिक अर्थ किसी कार्य को रोकना  सीमाएं किसी संस्था का जो
निर्धारित
कार्य नहीं है फिर भी वह संस्था उस काम को करता है तब इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट इस याचिका का
उपयोग करेगा


 उत्प्रेषण लैटिन शब्द CERTIERARY  शाब्दिक अर्थ रुक जाओ  सीमाएं ऐसे मामले जितने व्यक्ति
के मौलिक अधिकारों का हनन होता है ऐसे मामलों को सुप्रीम कोर्ट अपने पास ले लेता है यह याचिका
ज्यादातर फ्री कोर्ट को दी जाती है रुक जाओ यह काम आपके अंडर नहीं है


. अधिकार प्रचछा  लैटिन शब्द  वारंटो शाब्दिक अर्थ किस आधार से सीमाएं सभी सार्वजनिक पद के लिए
कोई ना कोई योग्यता होते हैं यदि आप इस योग्यता का उल्लंघन करते हुए यदि आप किसी पद को प्राप्त
कर लेते हैं और इसकी वजह से लोगों की मौलिक अधिकार का हनन होता है ऐसी स्थिति में SC  इस प्रका
की याचिका जारी करता है


याचिकाएं जारी करने के मामले में कौन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह शक्तिशाली  कौन है सुप्रीम कोर्ट
या हाई कोर्ट इसका उत्तर हाई कोर्ट है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट केवल पांच प्रकार की  याचिका ही जारी कर
सकता है लेकिन उच्च न्यायालय कुल 6 प्रकार के याचिका जारी कर सकता है हाई कोर्ट के पास छटा
याचिका इंजक्शन है


जो कि आर्टिकल 226 के अंतर्गत यदि नागरिकों को हाथों हाथ किसी मुद्दे पर राहत चाहिए तो ऐसी स्थिति
में हाईकोर्ट में याचिका जारी कर सकता है सुप्रीम कोर्ट  नहीं दूसरा कारण यदि हमारे विधिक अधिकार का
भी हनन होता है तो हाईकोर्ट यह याचिका जारी कर सकता है मौलिक अधिकारों का हनन होगा तो करेगा
ही करेगा लेकिन विधिक अधिकार में भी यदि किसी प्रकार का उल्लंघन हो रहा है तो ऐसी स्थिति में भी
 यह याचिका जारी की जा सकती है


अनुच्छेद 33 सैन्य बल पुलिस लॉयन ऑर्डर  को मेंटेन करने वाले लोग तथा इंटेलिजेंस पर काम करने
वाले लोगों पर  संसद कानून बनाकर उसमें कमी कर सकती है मतलब जितना हम लोग यानी कि आम
नागरिक अपने मौलिक अधिकारों से लाभान्वित होता है उतना हमारे  सैन्य बल पुलिस लॉयन आर्डर को
मेंटेन करने वाले लोग नहीं यह बात का उल्लेख अनुच्छेद 33 करता है


अनुच्छेद 34 सेना का कानून यदि मार्शल  कानून स्थापित हो जाए हमारे देश में अभी तक यह कानून
स्थापित नहीं हुआ पर ऐसी स्थिति में यदि यह मार्शल कानून लोगों के मौलिक अधिकार में किसी भी प्रकार
का नुकसान करता है तो संसद कानून बनाकर क्षति की पूर्ति कर सकता है अनुच्छेद 34 इस बात का
उल्लेख करता है


अनुच्छेद 35 वे सारे मौलिक अधिकार जिसमें कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है इस बात का
उल्लेख करता है




ARTICLE 16[3]


ARTICLE 32[3]


ARTICLE 33
                 4.ARTICLE 34
                                                





आज हमने मौलिक अधिकार के तहत सारे छह मौलिक अधिकारों का वक्तव्य समाप्त कर
दिया मेरे विचार से
आप सभी को पसंद आया होगा अब हम आर्टिकल 36 से आगे अध्ययन करेंगे जो कि राज्य
के नीति निदेशक
तत्वों को बताता है इंतजार करें बहुत-बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,PK25NG

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