आर्टिकल 324 निर्वाचन आयोग का उल्लेख करता है इसके अनुसार एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित संख्या में निर्वाचन आयुक्त होते हैं
#.25 जनवरी 1950 को वर्तमान चुनाव आयोग स्थापित हुआ 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान में 16 अनुच्छेद लागू हुए थे इसमें आर्टिकल 324 भी शामिल था
#.सुकुमार सेन पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा
#.के सुंदरम का निर्वाचन आयुक्त के रूप में कार्य का लगभग 9 वर्ष का था
#.1950 से 1989 तक आयोग एक सदस्य संख्या थी
तरकुंडे समिति
ने पहली बार आयोग को बहुसदस्य संख्या बनाने की सिफारिश की थी सन 1975 में
1989 में आयोग की पहली बहुसदस्य संख्या बनाया गया लेकिन 1990 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इसे वापस एक सदस्य बना दिया गया
गोस्वामी समिति
की सिफारिश पर 1993 आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त के अलावा दो अन्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं
#.वीएस रामादेवी 2011 एकमात्र महिला हैं जो मुख्य निर्वाचन आयुक्त रह चुकी हैं
ओपी रावत 22वें नंबर के हैं और वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं जबकि सुनील अरोड़ा व अशोक लवासा अन्य निर्वाचन आयोग हैं
इनकी योग्यताएं क्या होनी चाहिए
संविधान में उल्लेखित नहीं है भारतीय आईएएस अधिकारियों को इस पद पर नियुक्त किया जाता है
इनकी नियुक्ति के संदर्भ में तो
इनका नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा साथ ही व्यवहार में मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर इस संदर्भ में और कोई कॉलेजियम व्यवस्था नहीं है
इनके कार्यकाल की
संविधान में उल्लेखित नहीं है लेकिन कार्यकाल समानता 6 वर्ष तथा सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष होती है
इनको हटाया कैसे जाए
आर्टिकल 324 के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसी विधि से हटाया जाता है जिस विधि से आर्टिकल 124 (4 )के तहत सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाया जाता है आर्टिकल 324 में यह भी उल्लेखित है कि अन्य निर्वाचन आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जाएगा
Ex. वर्ष 2009 में नवीन चावला तात्कालिक निर्वाचन आयुक्त को हटाने की सिफारिश की गई थी लेकिन नहीं हटाया गया
आर्टिकल 324 के
तहत ही यह राष्ट्रपति और राज्यपाल का दायित्व है कि वह चुनाव आयोग को चुनाव करवाने हेतु प्रशासनिक तंत्र उपलब्ध करवाएं
आयोग के कार्यों की
आयोग के कार्य में जैसे
#.चुनाव कराना
Ex. आर्टिकल 324 के तहत राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति तथा राज्य सभा लोक सभा विधान सभा विधान परिषद के चुनाव करवाता है
चुनाव के दौरान आचार संहिता की क्या है ?
इसका मतलब सही ढंग से चुनाव करवाने के लिए निर्वाचन आयोग का नियम व कानून के कलेक्शन यह मिनिमम पीरियड 30 दिन का और मैक्सिमम 90 दिन का हो सकता है 1971 में पहली बार यह संहिता बनाई गई इसका उल्लंघन होने पर आयोग party की उम्मीदवारी खारिज कर सकता है चुनाव लड़ने पर रोक लगा सकता है अथवा राजनैतिक दल की मान्यता समाप्त कर सकते हैं
#.चुनाव आयोग की शक्तियां
अप्रैल 2018 में आरजेडी लालू प्रसाद की पार्टी को नोटिस दी कि आप ऑडिट जमा करवा देना नहीं तो आपकी पार्टी की मानता खारिज कर देंगे
# साथ ही चुनाव के संदर्भ में अधिसूचना जारी करना
#.आदर्श आचार संहिता को लागू करवाना
#.साथ ही मतदाता सूचियां तैयार करना
इंदिरा गांधी वर्सेस जय नारायण का मामला 1975
का इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी तब इनका रायबरेली का चुनाव इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दी थी जय नारायण ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि वह प्रधानमंत्री के पावर का उपयोग की और वह चुनाव जीत गई हैं इलेक्शन कमीशन का रिपोर्ट खारिज हो गया दिन था 12 जनवरी 1975 का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री को मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का दोषी पाते हुए उनके चुनाव को रद्द कर दिया तब चुनाव संबंधी विवादों की प्रारंभिक सुनवाई करना भी आयोग का काम था लेकिन राष्ट्रपति और एमपी के चुनाव संबंधी विवादों में आयोग की कोई भूमिका नहीं है तब यह हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार था जब देश का प्रधानमंत्री इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी गवाही देने के लिए कटघरे में बैठी थी
परिसीमन की
संख्या निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण
1971 की जनसंख्या के आधार पर 2001 जनसंख्या के आधार पर
1971 की जनसंख्या के आधार पर आज भी चुनाव कराए जाते हैं तथा निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण 2001 जनसंख्या के आधार पर की जाती है
#.प्रत्येक 10 वर्षों में परिसीमन किया जाना चाहिए आर्टिकल 82 इस बात का उल्लेख करता है आर्टिकल 327 के तहत परिसीमन के संदर्भ में संसद कानून बनाती है अब तक चार बार परिसीमन आयोग का गठन किया गया है पहली बार 1952 में तथा अंतिम बार 2002 में आयोग का गठन किया गया था जस्टिस कुलदीप सिंह चौथी परिसीमन आयोग के अध्यक्ष थे मुख्य निर्वाचन आयुक्त इस आयोग के पदेन सदस्य होते हैं
वर्तमान में 1971 की जनसंख्या के आधार पर स्थान आवंटन तथा 2001 के जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण किया जाता है वर्ष 2026 तक यहीं रहेगा 84 एवं 87 संविधान संशोधन द्वारा यह प्रावधान किया गया है
आर्टिकल 329 के तहत परिसीमन को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती
आज हमने चुनाव आयोग से संबंधित सारे तथ्य को बखूबी से पड़ा इसके अगले अध्याय में हम बात करेंगे राजनीति दल राष्ट्रीय एवं राज्य पार्टियों के बारे में तब तक सब अपना ख्याल रखिए बहुत बहुत बहुत धन्यवाद
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Give me only suggestions and your opinion no at all Thanx