कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की
आर्टिकल 126 में यह उल्लेखित है कि मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त होने पर राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त कर सकते हैं संदर्भ न्यायाधीश की नियुक्ति आर्टिकल 127 में यह उल्लेखित है कि उच्चतम न्यायालय में कोरम नहीं होने पर भारत के मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति के साथ परामर्श करके हाईकोर्ट के ऐसे न्यायाधीश जो सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनने की योग्यता रखते हैं उन्हें सुप्रीम कोर्ट में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकते हैं
सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की पुनः नियुक्ति
#.आर्टिकल 128 में उल्लेखित है कि सुप्रीम कोर्ट में कोरम नहीं होने पर भारत के मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति के साथ परामर्श करके सेवानिवृत्त न्यायाधीश को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त कर सकेंगे
नोट
तदर्थ न्यायाधीश तथा ऐसे सेवानिवृत्त न्यायाधीश जो सुप्रीम कोर्ट में पुनः नियुक्त हुए हैं उनको वे सभी सुविधाएं व शक्तियां प्राप्त होती हैं जो नियमित न्यायाधीशों को प्राप्त होती हैं
#.नोट आर्टिकल 348 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में सभी कार्य वाजिया अंग्रेजी भाषा में होती हैं
#. आर्टिकल 138 के तहत उच्चतम न्यायालय दिल्ली में स्थित है भारत के मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति के अनुमोदन पर उच्चतम न्यायालय की पीठ अन्य स्थान पर भी स्थगित स्थापित कर सकते हैं
केजी बालकृष्णन की सुप्रीम कोर्ट में जज रह चुके हैं उस समय बहुत ज्यादा संभावनाएं बन गई थी कि सुप्रीम कोर्ट की एक ब्रांच दक्षिण भारत में भी हो जाएगी लेकिन राष्ट्रपति को इंटरेस्ट नहीं लिया और पीठ स्थापित नहीं हो सकी
उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता
#.मूल प्रारंभिक अधिकारिता ओरिजिनल जूरिडिक्शन ऐसे मामले जिनकी सुनवाई केवल उच्च न्यायालय करता है ऐसे मामले निम्न है
#.भारत सरकार के किसी राज्य सरकार के साथ विवाद उत्पन्न होने पर
#.एक राज्य सरकार का दूसरे राज्य के साथ विवाद उत्पन्न होने पर
#.आर्टिकल 131 में उच्चतम न्यायालय के मूल अधिकारिता का उल्लेख है हालांकि article 71 के तहत राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी विवादों की सुनवाई भी करता है मौलिक अधिकारों के उल्लंघन हो जाने पर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट दोनों मामले की सुनवाई कर सकते हैं आर्टिकल 226 इस बात को बखूबी बताता है
अपीलीय अधिकारिता के बारे में (Appeliate jurisdiction)
#.आर्टिकल 132 में उल्लेखित है कि दीवानी अपराधिक और संविधान की व्याख्या निर्वाचन से संबंधित मामलों में सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है
#.आर्टिकल 133 के तहत दीवानी मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है
#.आर्टिकल 134 दण्डित अपराधिक मामलों में हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है
लेकिन इसके 2 शर्ते हैं
1.पहला सत्र न्यायालय में चल रहे किसी मामले को हाईकोर्ट अपने पास मंगवा कर यदि फांसी की सुना दे तो
2.दूसरा सत्र न्यायालय को किसी व्यक्ति को -बरी कर दिया है और उच्च न्यायालय में अपील से फांसी की सजा सुना दी है तो सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है
आर्टिकल 134(A) कि
#.इसमें उल्लेख है कि सुप्रीम कोर्ट में अपील हेतु हाई कोर्ट से प्रमाण पत्र प्राप्त करना जरूरी है
अब हम बात करते हैं विशेष याचिका की Special leave petition)
स्पेशल लीव पिटिशन आर्टिकल 136 के तहत यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर किया जा सकता है सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय अथवा हाईकोर्ट का ऐसा निर्णय जिसमें प्रमाण पत्र नहीं दिया गया हो उन मामलों में विशेष याचिका दायर की जाती है
आर्टिकल 262
#.के तहत संसद कानून बनाकर जल संबंधी विवादों के निपटारे के लिए ट्रिब्यूनल या प्राधिकरण का गठन कर सकती है संसद कानून बनाकर वारंट प्राधिकरण के नियमों या निर्णय सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता से बाहर कर सकती है
आर्टिकल 329
#.में उल्लेखित है कि परिसीमन को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती परिसीमन मतलब एक बार यह बता दिया गया है कि यह वाला एरिया यह विधानसभा क्षेत्र में आएगा तो दोबारा इसके खिलाफ कोई न्यायालय में चुनौती स्वीकार नहीं की जा सकती
०.निर्णयों की समीक्षा करना न्यायिक पुनर्विलोकन की( Judicial Review)
आर्टिकल 137 में भी उल्लेखित है कि सुप्रीम कोर्ट अपने द्वारा दिए गए निर्णय की समीक्षा कर सकता है
#.एग्जांपल बेरुबारी बाद 1960 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है लेकिन केशव नंद भारती वाले बाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा प्रस्तावना संविधान का भाग है
#.दूसरे एग्जांपल देखते हैं गोलकनाथ बाद 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा संसद को फंडामेंटल राइट्स में कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं है लेकिन केशव नंद भारती वाले बाद में संसद ने कहा संसद को फंडामेंटल राइट्स में भी कानून बनाने का अधिकार है
उपचारात्मक याचिका की( Curative petition)
०.सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशेष याचिका खारिज करने के बाद भी प्राकृतिक न्याय नेचुरल जस्टिस के उल्लंघन के आधार पर यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती हैं
#.एग्जांपल रूपा हुरा वर्सेस अशोक हुरा रहा 2002 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार इस अवधारणा को दिया था
# पिछले कुछ वर्षों में यह नई अवधारणा सामने आई खारिज हो जाने के बाद भी पीड़ित पक्ष किसी गंभीर आधार पर उपचार का निवेदन करना चाहता है इस याचिका पर तीन जज सुनवाई करेंगे वही जनसुनवाई करेंगे जिन्होंने आपकी विशेष याचिका खारिज की थी
न्यायिक पुनर्विलोकन
#. कोई भी ऐसी विधि जो संविधान का उल्लंघन करती है उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है सुप्रीम कोर्ट उसे शून्य घोषित कर सकता है इस संबंध में दो सीमाएं हैं
1.24 अप्रैल 1973 से पहले कि वे कानून जो नौवीं अनुसूची में शामिल है
2.दूसरा ऐसे संविधान संशोधन जो आधारभूत संरचना का उल्लंघन नहीं करते
० 24 अप्रैल 1973 यह निर्णय के साबरवाल में 9 सदस्यीय पीठ ने 11 जनवरी 2007 को निर्णय दिया कि इससे पहले इस सूची में शामिल कानून न्यायिक समीक्षा से बाहर थे
०.अभिलेख न्यायालय की (Court of Reward)
आर्टिकल 129 के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए सभी निर्णयों का रिकॉर्ड रखा जाता है इस के दो अर्थ है सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भारत के सभी न्यायालयों के लिए संदर्भ रिफरेंस नजीर होते हैं दूसरा सुप्रीम कोर्ट अपनी अवमानना पर संबंधित व्यक्ति का को सजा दे सकता है इस संदर्भ में संसद द्वारा न्यायिक अवमानना अधिनियम 1971 बनाया गया है इस अधिनियम के तहत पद आसीन न्यायाधीश को भी सजा दी जा सकती है
#.एग्जांपल सीएस कर्णन कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश भारत के न्याय के इतिहास में ऐसे पहली न्यायाधीश हैं जिन्हें वर्ष 2017 में पद पर रहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर सजा दी थी
#.आर्टिकल 138 के तहत संसद कानून बनाकर उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता में वृद्धि कर सकती है
#.आर्टिकल 139 के तहत कानून बनाकर मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य मामलों में भी याचिका जारी करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को दे सकती है
#.आर्टिकल 139a एक ही प्रकार के मामले यदि विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित होने पर सुप्रीम कोर्ट उन मामलों को अपने पास मंगवा सकता है
#.सुप्रीम कोर्ट किसी मामले को एक हाई कोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट को ट्रांसफर कर सकता है 42वां संविधान संशोधन द्वारा यह Article जोडा गया
#.आर्टिकल 44 वा संविधान संशोधन द्वारा इसमें कुछ और परिवर्तन किया गया एग्जांपल गुजरात में हुई दंगे गुजरात हाईकोर्ट से Bombey HC को चले गए थे मामले
आज हमने सुप्रीम कोर्ट में से संबंधित विशेष याचिका उससे संबंधित तथ्य के बारे में विस्तार से चर्चा किया इसके अगले अध्याय में हम संविधान पीठ या कांस्टीट्यूशनल बेंच के बारे में बात करेंगे तब तक आप सब अपना ख्याल रखें धन्यवाद
Emogi :
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Give me only suggestions and your opinion no at all Thanx